Saturday, 22 September 2012

नदिया : THE RIVER


      
             नदिया
नदिया रे नदिया, तू कहाँ चली छलिया
कल कल कल कल, छल छल छल छल
तू बहती जाए.....बहती ही जाए....
                    नदिया रे नदिया......
कौन  है जो  तुझको  बुलाए
चंचलता तेरे मन में जगाए
जाने क्या तेरे मन को  लुभाए
कभी ना रुके  तू दौड़ी जाए
कल कल कल कल छल छल छल छल
तू बहती जाए.....बहती ही जाए....
                    नदिया रे नदिया......

हिमनद की तू गोदी से आए
झरनों से मीठा संगीत चुराए
मु़ड़ कर न  देखे दौडी  जाए
कभी सीधी दौड़े  कभी बल खाए
कल कल कल कल, छल छल छल छल
तू बहती जाए.....बहती ही जाए.....
                    नदिया रे नदिया......

पथरों से झगडे  रेती से खेले
कभी तू  कितना शोर  मचाए
और  कभी तू चुप हो  जाए
मन में कैसे सपने सजाए
कल कल कल कल, छल छल छल छल
तू बहती जाए.....बहती ही जाए.....
                    नदिया रे नदिया......

हिमालय से जब शिवालिक में आए
खेतों  को  सींचे तू प्यास बुझाए
धर्म की नगरी में पापों को धोए
मान्झी के  संग गीत गुनगुनाए
कल कल कल कल, छल छल छल छल
तू बहती जाए.....बहती ही जाए.....
                    नदिया रे नदिया......

सागर समीप जब तू  पहुंचे
बडी़ इठ्लाए तू बड़ी इतराए
ऊँची  नीची लहरों में मिल जाए
जैसे मंजिल तेरी  मिल जाए
कल कल कल कल, छल छल छल छल
तू बहती जाए.....बहती ही जाए....
                    नदिया रे नदिया......

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