गणित का भूत : GHOST OF MATH
जब अभिषेक छोटा था, उस के मम्मी-पा़पा ने
पाया कि वह तीव्र बुद्धी वाला बच्चा है। पहली कक्षा से पांचवी कक्षा तक वह बहुत ही
अच्छे नंबरों के साथ पास होता रहा रहा। पर जब वह छठी कक्षा में गया तब उसे लगा कि अन्य विशयों की
तुलना में गणित में कम अंक आ रहें हैं. उसने पाया कि उसकी रुचि जैसी अन्य विषयों में
है, वैसी गणित में
नहीं है। जहाँ अन्य विषयों में उसके १०० में से 90 से ले कर 98 प्रतिशत तक अंक
आ रहे थे, वहीं गणित में वह
मात्र 55 से 60 प्रतिशत तक ही
अंक ले पा रहा था।
पता नहीं क्या होता था कि
गणित पढ़ते पढ़ते उसके सिर में दर्द होने लगता था। इससे पपेरों में उसके कम अंक आते
थे और उसका रैंक अपनी कक्षा में दसवें-बारहवें स्थान पर चला जाता था। उसके दोस्त
उससे अधिक अंक प्राप्त कर रहे थे। इससे अभिषेक के मन में अपने दोस्तों के प्रति जलन की भावना
उत्पन्न होने लगी। उसके दोस्त अन्य विशयों में तो उससे पीछे रहते थे पर गणित में 95 से ले कर 99 प्रतिशत तक अंक
ले कर उससे ऊपर के रैंक हासिल कर रहे थे।
छटी और सातवीं कक्षा तक तो
उसने व उसके
मम्मी और पापा ने सोचा कि चलो कोई बात नहीं है, केंद्रीय
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का सिलेबस है, अगले वर्ष आठवीं कक्षा में सब कुछ ठीक हो जाएगा।
अभिषेक ने अपनी पूरी
तैयारी के साथ आठवी कक्षा की परीक्षा दी। उसके अन्य पेपर तो बहुत ही अच्छे हुए
परंतु इस बार फिर से गणित का पेपर गड़बड़ा गया। उसने तैयारी तो बहुत की थी, पर न जाने उसे
क्या हो जाता था कि परीक्षा भवन में गणित के पेपर में उस का दिमाग ही सुन्न सा पड़
जाता था। उसकी हार्दिक इच्छा थी कि वह भी अपनी कक्षा में प्रथम आए पर गणित के पेपर
के कारण उसकी इस इच्छा पर तुषारापात हो रहा था। जब परीक्षा परिणाम आया तो उस ने
पाया कि उसका दोस्त प्रणव प्रथम आया था। उसके पांच छः अन्य दोस्तों के भी उससे उपर
ही अंक आए थे। उसकी आंखों से आंसू टपक पड़े। वह उन सब लोगों को कोसने लगा जिन
लोगों ने गणित को पढ़ाई के सिलेबस में शामिल किया था।
खैर! उसके मम्मी व पापा
ने उसे सांत्वना दी और नवीं व दसवीं कक्षा में उसके लिए ट्यूशन का भी इंतजाम कर
दिया। वह कोई नालायक बच्चा नहीं था। क्या हुआ जो उस के गणित में ही कम अंक आ रहे
थे। अन्य विषयों में तो वह अन्य बच्चों से अधिक ही अंक ले रहा था।
दसवीं कक्षा की बोर्ड की
परीक्षा हुई। इस बार स्थिति में सुधार हुआ था। यद्यपि इस बार भी अन्य विशयों की
तुलना में उस के तुलनात्मक रूप से कम ही अंक थे परंतु उसका मन तब हल्का हो गया जब
वह अपनी कक्षा में 91 प्रतिषत अंको के
साथ दूसरे स्थान पर रहा था।
अब बारी आई गयारहवीं
कक्षा में विषयों के चयन करने की। यहां फिर उलझन खड़ी हो गई। उसे भी व उसके
मम्मी-पापा भी को पता था कि वह गणित में कमजोर है। इसलिए उन्होंने निर्णय लिया कि
अभिषेक अब नान-मेडिकल विषय नहीं रखेगा।
बेकार में दो वर्ष बरबाद हो जाएंगे। मनोबल पर भी बुरा असर पड़ेगा। उन्होने मिल कर
निर्णय लिया कि अभिषेक मेडिकल विषय रखेगा। बायोलोजी व केमिस्ट्री में उसकी बहुत पकड़ थी। फिजिक्स उसे अच्छी नहीं
लगती थी क्योंकि उसमें काफी सारा गणित होता था। मजबूरी थी कि बायोलोजी व केमिस्ट्री
के साथ फिजिक्स पढ़नी ही पड़ती है। फिर भी
उसने सोचा कि वह इस विषय को भी संभाल
लेगा।
दो वर्षों तक अभिषेक ने मन लगा कर पढ़ाई की। वह बारहवीं कक्षा में 85 प्रतिषत अंको के
साथ पास हुआ। उसने अब प्री-मेडिकल टैस्ट की तैयारी प्रारंभ कर दी। एक अच्छे कोचिंग
सैटर में कोचिंग ली। कोचिंग प्राप्त करते करते भी उसे लगा कि न जाने क्यों वह
फिजिक्स में पिछड़ रहा था । उसने पाया कि इसका कारण गणित में उसकी रूचि न होना था।
उसने सोचा कोई बात नही, देखा जाएगा। वह
बायोलोजी व केमिस्ट्री की तैयारी जोर-शोर से करने लगा ताकि फिजिक्स में जो कमजोरी
है, उसकी भरपाई इन विषयों
में अधिक अंक लेने से हो सके।
प्री-मेडिकल की परीक्षा
हुई। अभिषेक ने भी यह परीक्षा दी। जब रिजल्ट आया तब अभिषेक के पैरो तले की जमीन खिसक गई। बायोलोजी व केमिस्ट्री
में तो उसे बहुत ही अच्छे अंक मिले थे पर
फिजिक्स में बहुत ही कम अंक। इस कारण वह चयन मैरिट सूची में आने से मात्र पांच
अंको से पिछड़ गया। उसके कई दोस्तों को देश के कई मेडिकल कालेजों में एडमिशन मिल गई। इससे अभिषेक का मनोबल और गिर गया। उसने दो तीन और राज्यों के
मेडिकल कालेजों में एंटरैंस टैस्ट दिए पर स्थिति वही ढांक के तीन पात रही। उसने एक
वर्ष तक और कोचिंग ली। उसे लगा कि अब तो कोई माई का लाल उसे डॉक्टर बनने से नहीं रोक सकता। उसने अगले वर्ष फिर से ऐंटरैंस परीक्षा दी। विधि की विडम्बना देखिए वह इस वर्ष भी वह फिजिक्स में आए कम अंकों के कारण मेरिट
सूची में आने से वंचित हो गया।
अभिषेक के दो बहुमूल्य वर्ष
बरबाद हो चुके थे। लाखों रूपय कोचिंग लेने
में बरबाद हो चुके थे। पर कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला था। उसका मनोबल गिर
चुका था। वह हीन भावना से ग्रसित हो चुका था। उसे इस बात पर ग्लानि हो रही थी कि
उस ने अपने मम्मी पापा केखून पसीने की कमी से कमाए लाखों रूपये बरबाद कर दिए है। उसके मम्मी पापा
भी कम दुःखी नहीं थे। वे भी अपने लाडले को डॉक्टर बनाना चाहते थे। पर इस बात के लिए वे अभिषेक पर
अधिक दबाव नहीं बनाना चाहते थे। इससे उसके मनोबल पर खराब असर पड़ सकता था।
अभिषेक के पिता मेरी जान
पहचान में से थे। एक दिन एक विवाह समारोह में वे भी अभिशेक के साथ आए मैंने देखा कि अभिषेक गुमसुम सा था। मैंने उससे
परिचयात्मक औपचारिक वार्तालाप किया व
सरसरी तौर पर अभिषेक पढ़ाई के बारे में बात भी बात की। मैंने पाया कि बच्चा तो
बहुत इंटैलीजैंट है पर कुछ कमी है जिसे दूर करने की नितांत आवष्यकता है। मैंने अभिषेक
से कहा कि तुम समय निकाल कर मेरे पास आया करो मैं तुम्हें पढ़ाई करने के कुछ ऐसे साधारण
परंतु लाभदायक नुस्खे बताउंगा, जिन्हे मैंने अपने जीवन में आजमा कर लाभ
प्राप्त किया है।
अब अभिषेक मेरे पास हर
दूसरे-तीसरे दिन आने लगा। मैने पाया कि उसका गणित का आधार ही बहुत कमजोर है। उसे
बीस तक के पहाड़े भी अच्छी तरह याद नहीं थे। गणित के कुछ आधारभूत फोर्मुले भी उसे
याद नहीं थे। मैने उसे कहा कि दो महीने तक मैं तुम्हें गणित के आधारभूत सिद्धांत
बताउंगा। वह मान गया। तुम पढ़ो तो अपने आप, परंतु जब कुछ समझ में न आए तो बिना
झिझक मुझसे पूछते रहना।
मैंने उससे एन. सी. आर.
टी. की छटी से ले कर दसवीं कक्षा तक की पुस्तकें मंगवाई। पढाई की शुरूआत गिनती
गिनने व पहाड़े याद करने से हुई। ऐसा करते हुए अभिषेक के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
उसने मेरे साथ सहयोग किया व दो महीनों में ही उसने अंक गणित, बीज गणित व
ज्यामिति के सारे तरीकों का रिविजन कर लिया। मैं जानबूझ कर उससे उलट पलट कर
तरह-तरह के सवाल पूछता था। बीच- बीच में उन सवालों को रोचक बनाने के लिए मैं उन्हे
फिजिक्स व केमिस्ट्री से भी जोड़ देता था। मुझे कविताएं लिखने का शौक है। जब अभिषेक
बोर होने लगता था, तब मैं उसे कविता सुना देता था। इससे माहोल
रोचक हो जाता था। मैने अभिषेक को कहा कि वह इस वर्ष फिजिक्स व गणित के उपर ही अपना अधिकतम ध्यान दे।
अन्य विशयों की तो उसकी तैयारी लगभग हो ही चुकी है।
इस सब के बहुत ही आश्चर्य
चकित कर देने वाले परिणाम सामने आए।
अभिशेक ने अगले छः महीने तक घर पर रह कर ही गहन पढ़ाई की। अब उसे गणित से बिल्कुल
भी डर नहीं लग रहा था। अब वह गणित को एक बोझ की तरह नहीं बल्कि एक रोचक विषय की तरह पढ़ रहा था।
अब अभिषेक ने फिर से
प्री-मेडिकल टैस्ट दिया। जब परिणाम निकला तो हर कोई आश्चर्य चकित रह गया। अभिषेक पूरे प्रदेश में दूसरे स्थान
पर आया था। जब उसकी अंक तालिका आई जब और अधिक अचम्भा हुआ। इस बार उसके फिजिक्स में बायोलोजी व केमिस्ट्री
में आए अंको की तुलना में अधिक अंक आए थे।
अभिषेक व उसके मम्मी-पापा
मेरे पास मिठाई ले कर आए। अभिषेक ने मेरे पैर छुए। वह कहने लगा कि वह बेकार में ही
इतने वर्षों तक गणित से डर रहा था व बेकार
में ही यह इंतजार करता रहा कि गणित से कब पीछा छूटे। अगर पहले ही उसने गणित को
दोस्त मान लिया होता तो दो वर्ष पहले ही
वह डाक्टरी की पढ़ाई के लिए चयनित हो चुका होता व उसके दो बहुमूल्य वर्श बरबाद न
होते।
मैने मन ही मन सोचा कि
कितने ऐसे बच्चे हैं जो बहुत योग्यता रखते हुए भी गणित के प्रति वितृष्णा या सही मार्गदर्शन
न मिलने के कारण जीवन में पिछड़ जाते हैं।
काश ! समय रहते वे भी अभिषेक की तरह संभल जाएं।
रचना: गौतम प्रकाश
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