बसंत आ भी जाओ
कलियाँ घूंघट उठाने लगी
है
चिडियां चहचहाने लगी है
मृदुल
हवा बहने लगी है
पीली
सरसों से भर जाएंगे खेत
बासंती रंग बिखर जायेंगे
ओ बसंत अब
तुम आ भी जाओ
छुप छुप के
यूँ न शर्माओ
आ कर धरा
को सजा जाओ
भौरें लगे डालियों पर
मंडराने
गुन गुन
गीत गुनगुनाने
कलियों को
लगे गुदगुदाने
तुम्हारे
आने कि आहट पा कर
सर्दी दुम दबा कर भाग
जाएगी
ओ बसंत अब
तुम आ भी जाओ
छुप छुप के
यूँ न शर्माओ
आ कर धरा
को सजा जाओ
समीर कलियों को
सहलाएगी
शर्मीली कोंपले निकल आएंगी
फूलों से
डाली डाली सज जाएगी
महक उठेगी
प्रकृति सुगंधि से
चहुंओर रंगीनियाँ छा जाएगी
ओ बसंत अब
तुम आ भी जाओ
छुप छुप के
यूँ न शर्माओ
आ कर धरा
को सजा जाओ
पक्षी डालियों पर चहचहाएंगे
कपोत चोंच
से चोंच मिलायेंगे
सब पांखी
लगे हैं नीड बनाने
अब हर और
प्रेम के रंग बिखरेंगे
चहुँऔर सुरीली तानें
बिखर जाएंगी
ओ बसंत अब
तुम आ भी जाओ
छुप छुप के
यूँ न शर्माओ
आ कर धरा
को सजा जाओ
*****
गौतम प्रकाश
No comments:
Post a Comment